कैसी विकट घड़ी आई है –
कैसी विकट घड़ी आई है,हर मानव भयभीत हैं…
पूछ रही है अब मानवता, हे प्रभु ! कैसी प्रीत है…
किसने छेड़ा है सूरज को,तन में ताप जगाये।
किसने छेड़ा है बादल को ,शीत कँपकँपी लाये ॥
साँसों पर संकट आया या ,पवन का बैरी गीत है…
पंचतत्त्व की प्रकृति बिगाड़े,कर्म विरुद्ध बनाए ।
लौट के जैसे श्रद्धा -मनु के ,युग में हम भी आए ॥
भौतिकता के चरम काल में,काल कोरोना भीत है..
सपने सबके चूर हो गये,उन्नति – पथ कँटिलाए।
संकट के बादल जीवन पर ,निशि वासर गहराए ।।
मौत – दामिनी छेड़ रही ज्यों ,व्याधि का इक संगीत है…
– महेन्द्र नारायण
काँधला ,शामली ,उ० प्र०