कैसी ये शिकायतें?
कैसी ये शिकायतें?
जरा आज कहिए
दागी उतनी ही लगेगी
जितनी पहले मिली थी
कानाफूसियों का कहना
जरा आज समझिए
दिल पर उतनी ही बितेगी
जितनी पहले सुनी थी
शरीर का यूँ कराहना
जरा आज सहिए
पीड़ा उतनी ही होगी
जितनी पहले हुई थी
घटाओं की तरह झुकना
जरा आज दोहराइए
मजबुरियाँ उतनी ही होगी
जितनी पहले थामी थी
बंदिशों की ये दीवारें
जरा आज ढहा दिजिए
उंगलियाँ उतनी ही उठेंगी
जितनी पहले दिखी थी
कैसी ये विडंबना?
जरा आज देखिए
चोट उतनी ही पहुचेगी
जितनी पहले लगी थी
– शिवम राव मणि