कैसी ये पीर है
कैसी निःशब्दता
कैसी ये पीर है
व्याकुल हैं नैन भी
मन भी अधीर है
घायल जो कर गया
हमें वो तेरे
लफ़्ज़ों का तीर है
बरसे तेरे वियोग में
नैनो से नीर है
जग से विरक्ता
जीवन विवशता
हृदय तो आज भी
जैसे कबीर है।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद