कैसी तेरी खुदगर्जी है
कैसी तेरी खुदगर्जी है ,
कहते सब उसकी मर्जी है !
भटक गया राहों से अपने
कैसे लौट सकेगा ,
यहां घरों पर नाम , पता ,
ना तख्ती है !
जहां नहीं रह जाए
कोई भी अपना
अगर टूट जाए जीवन का
हर सपना ,
वज़ह कौन सी चाहत
मौन तरसती है !
अब मंजिल से क्यों डरना
क्या घबराना ,
यह मालिक का रहम
यही हमदर्दी है !