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8 Jul 2022 · 1 min read

कैसी तेरी खुदगर्जी है

कैसी तेरी खुदगर्जी है ,

कहते सब उसकी मर्जी है !

भटक गया राहों से अपने

कैसे लौट सकेगा ,

यहां घरों पर नाम , पता ,

ना तख्ती है !

जहां नहीं रह जाए

कोई भी अपना

अगर टूट जाए जीवन का

हर सपना ,

वज़ह कौन सी चाहत

मौन तरसती है !

अब मंजिल से क्यों डरना

क्या घबराना ,

यह मालिक का रहम

यही हमदर्दी है !

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