कैसी ख्वाईश अब
जमाने को देख लिआ इतने करीब से
कि अब कोई गुंजाइश बाकी नहीं रही
मतलब तक ही सीमित रहता है हर कोई
इनके संग जीने की अब कोई बात ही नहीं रही !!
रोक नहीं सकता है कभी कोई भावनाओं को
यह तो धारा की भांति बह जाया करती हैं
समेट कर ले जाती हैं यादों को सब की
अब किसी से प्यार वाली बात ही नहीं रही !!
आंसुओं का सैलाब कुछ पल जिन्दा रहता है
लोगों से अब वो प्यार वाली बात ही नहीं रही
जमाना इस कदर मतलबी हो गया है “अजीत”
अब तो किसी से मेरी कोई तकरार ही नहीं रही !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ