” कैसा विकराल ये कोरोना काल “
क्या कहें कैसे कहें
कोरोना के किस्से कितने कहें ,
ऐसा संक्रमण फैला पूरी दुनिया में
दुबक बैठे सब अपने कोना कुनिया में ,
कोई ज्यादा सचेत तो कोई बेपरवाह
जिसने पालन किया नियम उसकी वाह वाह ,
कितनों का अपनों ने साथ छोड़ दिया
इस काल ने विधि का नियम तोड़ दिया ,
ढ़ेर लग रहे लाशों के इस कदर
जैसे मची है हर तरफ कोई गदर ,
हर एक – एक बंदा इससे बेज़ार हुआ
जहाँ चूक हुई वहीं इसका शिकार हुआ ,
तीसरा विश्व युद्ध इस रूप में आ गया अभी
संक्रमण के विरूद्ध लड़ तो रहे हैं सभी ,
इक्कीसवीं सदी में सब कुछ अनोखा है
युद्ध लड़ने – देखने का माध्यम झरोखा है ,
कोरोना काल बन गया है विकराल
फिर ना सुनने मिले किसी का बुरा हाल ,
अब इसी को जीवन मान कर चलना है
हमें इस कोरोना से खुद ही लड़ना है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 23/08/2020 )