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12 Jul 2018 · 1 min read

‘ये कैसा मंज़र है’

“हर घड़ी उत्पात है,ये कैसा मंज़र है,
बिन बादल बरसात है, ये कैसा मंज़र है,
जिसको देखो लिप्त है,निंदा और नफरत में,
अचरज की हर बात है,ये कैसा मंज़र है,
ऊपर से सब प्यार दिखाते,छुपा के रखा खंजर है ,
भीतर सबके घात भरा ये कैसा मंज़र है,
महफूज नही अब रहा कोई,
नित बढ़ते अपराध से,
लूट -पाट और भ्रष्टाचार के बढ़ते अनुपात से,
मार -पीट हो जाती है,छोटी-छोटी बात से,
माँ बाप भी बोझ बने,ये कैसी फ़ितरत है,
बदलते हुए ज़माने की ये कैसी सूरत है,
गाड़ी,बंगला,दौलत,शोहरत,
बस इसकी ही ज़रूरत है,
रिश्ते नातों का मोल नहीं, ये कैसा मंज़र है,
सड़कों की साज सजावट में वृक्षों की कटाई जारी है,
कारख़ानों के धुओं से वायु प्रदूषण भारी है,
नदियाँ हुई मलिन सभी,
कचरों का प्रवाह इनमें निरंतर जारी है,
ये सब प्राकृतिक आपदाओं के,
निमंत्रण की तैयारी है,
ना सोचेंगे कल की तो, एक ऐसा दिन आयेगा,
साँस लेना भी मुश्किल होगा,
वातावरण दूषित हो जाएगा,
तन,मन और जीवनशैली को आज बदलना होगा,
देर अधिक होने से पहले हमें सुधरना होगा “

Language: Hindi
306 Views

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