सांप मुंह छुपाने लगे
सांप भी शर्म से मुंह छुपाने लगे
आदमी आदमी को सताने लगे
दुशमनी पर तुले हैं सगे भाई अब
आप कैसी यह दुनिया बनाने लगे
चैन से रोटियां जिनको मिलने लगी
अब वही लोग सर भी उठाने लगे
नाव काग़ज़ की जब पार होने लगी
शोर कितना यह सागर मचाने लगे
जब तसव्वुर लिए आपका सो गए
ख़्वाब जो भी दिखे सब सुहाने लगे
हम तो उनसे कभी रूठते ही नहीं
बेसबब क्यों हमें वो मनाने लगे
आपको देखकर गैर के साथ में
होश ‘अरशद’ के सारे ठिकाने लगे