कैसा घर है
कैसा घर है
सन्नाटा सा पसरा
रहता है
एक अदद बूढ़ा जोड़ा
जिन्दा सा है अब तक
रहता है
लौट काम-धंधे से
हर कोई शख़्श
बस अपने-अपने कमरे में
रहता है
अरे श्मशान में भी
मुर्दा जले ना जब तक
चहल-पहल का माहौल
रहता है
—-‘सुनीलपुरोहित —–