केशव
सभ्यताओं के समुन्दर में पड़ा है आदमी का शव।
उठो केशव उठो केशव जरा जल्दी उठो केशव।
आत्माओं के समुन्दर में भटकता आदमी का तन।
कहां हो तुम कहो केशव पता अपना बता केशव।
हुई है धर्म की हानि बढ़े दुष्कर्म के पर्वत अनीति भी।
रहा क्यों टूट है संकल्प हे केशव‚ तुम्हारा इस तरह।
किसे हां देखकर तुम विश्व में हो डर गये केशव।
समय है त्याग कर अब क्षीर में तुम शेष की शैय्या।
ग्रहण गर्भ कर केशव किसी कौशल कुमारी के।
व्यथा से चीखता तक शव जीवित इस देह का क्याॐ
अति भी लांघकर दुःनीति कर उपहास हंसता है।
रहा है मानवों का मन उद्वेलित दानवी कुकृत्य से।
कि दिन–रात ईश्वर की प्रतीक्षा यहां है हो रहा केशव।
सभी अर्जुन विलख गांडीव अपना देखता है रो रहा केशव।
नगन करके है,नचाता जा रहा नारियों को कौरवों के कर।
कहीं प्रण कृष्ण का ही हो रहा खण्डित नहीं केशव?
रहो मत मौन, भीषण भीष्म चुप रहने को आतुर है।
हवा,पानी,दरख्तों के नयन असहाय नभ को ताकता।
व हर आदमी खुद का उठाये शव यहां है नाचता।
गगन से है नहीं हटता, नयन है खोजता केशव तुझे केशव।
ढ़ूंढ़ने का क्रम नक्षत्रों से सितारों तक खतम होता नहीं होता।
घृणा विस्तार पाता जा रहा अति तीव्र बढ़ता जा रहा।
कहां हो तुम कहो केशव पता अपना बता केशव।
करोड़ों मानवों के विश्व में कोई कृष्ण हो जाताॐ
नहीं तो‚कृष्ण जैसा सोचता मन कृष्ण जैसा बाँटता।
तुझे आवाज ना देते तुझे हरगिज नहीं केशव।
करोड़ों लोग दुनिया के जनम लेते हैं ले शैशव
बड़े होते हैं ले शैशव खतम होते हैं ले शैशव।
इस दुनिया को जरूरत है परिपक्व मनु जन्मे।
तभी यह विश्व हो आगार सिर ऊँचा उठा रखने।
नहीं तो बस बना अंगार यह जलता रहेगा हे केशव!
यदि यह है विरूद्ध प्रकृति के जन्म क्यों न लें केशव!
तुझे आवाज ना देते तुझे हरगिज नहीं केशव।
न तन है सुरक्षित आदमी का नहीं तो मन ही हे केशव।
रहा ऐसा ही होगा भ्रमित द्वापर‚लोग द्वापर के अति।
जब कृष्ण कोई ले गया अवतार देने विश्व को थे गति।
कोई जब प्रौढ़ बालक जन्म लेगा इस जगत में कृष्ण बनकर।
करेगा नीति की स्थापना रण का नियोजन सात्विक काल बनकर।
दुष्कर्मों का बड़ा ही बोलबाला है यहाँ केशव ।
इसे है चाहिये विध्वंस ‚नव–निर्माण हेतु‚जानिये केशव।
ȴअȸरूȸणȸȸकुȸमाȸरȸȸप्रȸसाȸद