केना अगंप्रदेश मिथिला पावन धाम कहु(कविता)
जइ माटि जनम लेलौं शापित कोना,जन्मभूमि मान कहु
आब ओठपर लू नाम कोना,केना अगंप्रदेश मिथिला पावन धाम कहु
तऽ केना लिखू इतिहास विख्याता
तऽ केना लिखु आब इतिहास विख्याता,केकरा हम महान कहूँ
अरे मुरूख समझक हमे छलति दुनिया,केना खुद के इंसान कहूँ
मात्यभूमि सँ छल कऽ रहलो हो तु, केना तोहे इसान कहुँ
कि कंधरपक अंग गिरल धारा पर नै जानू ,केना अगंप्रदेश नाम लिखू
कि कंधरपक अंग गिरल धारा पर नै जानू ,केना अंगप्रदेश नाम लिखू
मिथिसँ मिथिला गौरब केना जानू केना शत शत
अशीश धरु
आ कोना लिखू सिता बहिन,अगं करण दानी केर व्यखान करू
की पश्न बडा कठीन अछि कोन धरतीक लेल , इ जिनगी संताप करु
की पश्न बडा कठीन अछि कोन धरतीक लेल ,इ जिनगी संताप करु
कोन धरतीक मा कहुँ,कोन धरतीसँ श्राप माथ धँरु
जे मात्यभूमि सिरहपा विधापति साहित्यसँ सींचालने,केकरा पे काला काल कहूँ
तते जनकी मा वचन लेलिन छेली,वेदेही वचन लेलिन छेली ,आब केकरा पर अभिमान करू
जे लेहुक रिस्तासँ बाटे,अपनासँ बाटे, कियैक नै हुनका नाजायज के औलद कहु
कि जे लेहुक रिस्तासँ बाटे,अपनासँ बाटे कियैक नै हुनका नाजाएज के औलद कहुँ