कृष्ण मारे तो बचाए कौन? कृष्ण बचाए तो मारे कौन?
कृष्ण मारे तो बचाए कौन?
कृष्ण बचाए तो मारे कौन?*
कई जन्मों से प्रतीक्षा कर रहा हूँ,
कभी तो मेरी ओर निहारोगे।
एक रावण मेरे मन में भी है,
राघव बनकर कब संहारोगे?
सुना है पतित पावन हो तुम,
मेरा जीवन कब सँवारोगे?
अहंकार तम में मंद पड़ा हूँ,
कन्हैया मुझको कब पुकारोगे?
मैं निम्न कोटि, दुष्ट और विकट,
मैं विकृतियों का स्वरूप प्रकट।
मैं इस काले युग की कालिया,
तुम चंद्र-सूर्य की लालीमा।
मेरी नैया भवसागर से
तुम ही पार लगाओ।
माया के सोम में मुग्ध पड़ा हूँ,
आकर मुझे बचाओ।
मृत्युलोक में फँसा पड़ा हूँ,
तुम नहीं तारोगे, तो तारे कौन?
कृष्ण मारे तो बचाए कौन?
कृष्ण बचाए तो मारे कौन?
मैं क्रोध-कुण्ठा का हूँ आहार,
तू परमपिता, सर्वसृष्टि आधार।
मैं तेरा ही सूक्ष्म अंश,
मैं कालि-काल का सर्पदंश।
मैं व्यर्थ घमंड में फूला हूँ,
नाम रतन को भूला हूँ।
अंधा अज्ञानी अहंकार,
मैं दुष्टता की हाहाकार।
मैं अँघ, नीच, पावन,
काम, क्रोध, भय का संगीत।
मैं दुष्ट, मलिन, चिंतित, कुण्ठित,
मैं दास तेरा, कलि से भ्रमित।
सुना है जगन्नाथ हो तुम,
नाथ, यह दास बस तेरे सहारे।
सुन लो विनती गोपीनाथ,
हे जानकी-वल्लभ, तारनहारे।
मायानगरी में बंद पड़ा हूँ,
तुम नहीं निकालोगे, तो निकाले कौन?
कृष्ण मारे तो बचाए कौन?
कृष्ण बचाए तो मारे कौन?
युवा रचनाकार
उज्ज्वल कुमार श्रीवास्तव