कृष्ण तुम्हारे मंदिर में
कृष्ण तुम्हारे मंदिर में
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कृष्ण तुम्हारे मंदिर सब, जाते प्रेम के साथ।
बना रहे सबके माथे, सदा कृष्ण का हाथ।।
तुम्हारे अनंत प्रेम से,जागे उर में आस।
सबके हृदय हो कृष्णा,तेरी ही प्यास।।
झूठी दुनिया, झूठे नाते, सांचा तेरा ही नाम।
कोई नहीं अपना यहां, एक तू ही आयेगा काम ।।
सुबह -शाम आठों याम, जपूं तेरा
नाम रे।
तेरा ही सुमिरन करते, सभी भक्त सांवरे।।
कान्हा से नैन लगे,दिल भी लगा
सांवरे से।
उर से प्रेम करने लगी, में अपने
सांवरे से।।
पतवार के बिना ही मेरी नाव चलाई है।
मेरे साथ होकर सदा, कृपा लुटाई है।।
जबसे हाथ तेरा थामा, सुख का
सबेरा है।
जबसे बनी तेरी जोगन,बस तेरा ही
बसेरा है।।
प्रभु!गल्ती को मेरी भुलाकर,
अपनी शरण में ले लो ।
भटकती हूं अंधेरे में, उजाले की
किरण दे दो ।।
सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर