कृष्णा मेरा प्रेम
।।1।।
श्याम श्याम जपते
मैं ऐसी खो जाऊँ।
दूँ वीणा पे तान
मैं मीरा हो जाऊ ।
है चाह नही कोई
बस चाह यही पाऊँ।
तुझे आंखों में बसाकर
मैं कबीरा हो जाऊँ ।।
।।2।।
कान्हा तेरे जैसी बंसी
भला कैसे बजाए कोई
जब मन कारी कोठरी
और वाणी विषाक्त हो ।।
।।3।।
तुम्हारा प्रेम
मेरी आत्मा की कामना
मेरे आंखों की प्यास ।।
तुम्हारा प्रेम
मेरे जीने का हेतु
तुम्हारे लौट आने की आस ।।
तुम्हारा प्रेम
मेरे आत्मा की शुद्धि
मेरे मन का बैराग ।।
निहारिका सिंह