*कुहरा दूर-दूर तक छाया (बाल कविता)*
कुहरा दूर-दूर तक छाया (बाल कविता)
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कुहरा दूर-दूर तक छाया
जाड़ा आया जाड़ा आया
सूरज देता नहीं दिखाई
कई दिनों से धूप न खाई
ठिठुर रही हैं दादी-नानी
पीतीं केवल उबला पानी
चाय सभी के मन को भाती
जाड़ों में लत लग ही जाती
कंबल ओढ़ा गरम रजाई
ठिठुरन लेकिन भाग न पाई
सूने सारे पार्क पड़े हैं
सभी घरों में ज्यों अकड़े हैं
मुड़ा-तुड़ा-सा कुत्ता पाया
भौं-भौं करने से कतराया
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451