कुसुमित जग की डार…
हंसगति छन्द…
1-
गजानन श्री गणेश, सदा सुखकारी।
शिव शंकर हैं तात, उमा महतारी।
प्रथम पूज्य श्रीपाद, अमंगल हारी।
चरण नवाऊँ माथ, हरो अघ भारी।
2-
ये हैं गण के ईश, सुवन शंकर के।
आए हरने क्लेश, सभी के घर के।
गणपति इनका नाम, सर्व सुख दाता।
पूरण करते काम, दुखों के त्राता।
3-
धेनु चराएँ श्याम, बजाएँ वंशी।
बस गोकुल के ग्राम, हो चंद्र-अंशी।
दें जग को संदेश, करो गौ सेवा।
सभी मिटेंगे क्लेश, मिलेगी मेवा।
4-
ले झुरमुट की ओट, देख लूँ तुमको।
भर नज़रों में रूप, सेक लूँ मन को।
रहो सदा अब साथ, जुड़े वो नाता।
बिना तुम्हारे नाथ, नहीं कुछ भाता।
5-
उगल रहा रवि आग, तपन है भारी।
चूल्हे पकता साग, झुलसती नारी।
क्रुद्ध जेठ का ताप, सहे दुखियारी।
टपके भर-भर स्वेद, लपेटे सारी।
6-
रहे समंदर शांत, उछलता नद है।
धीर-वीर-गंभीर, जानता हद है।
करे हदें वो पार, न तुम कुछ कहना।
मिले भले ही हार, मगर चुप रहना।
7-
तुम्हीं हमारी शान, मान हो बिटिया।
हम सबका अरमान, जान हो बिटिया।
बिटिया तुम पर नाज, हमें है भारी।
महक उठी है आज, खिली फुलवारी।
8-
कुसुमित जग की डार, फले अरु फूले।
आशा पंख पसार, उड़े नभ छू ले।
सुखद सँदेशे रोज, चले घर आएँ।
बरसें सुख के मेघ, खुशी सब पाएँ।
© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )