कुशादा
उम्मीदें वफ़ा ना इस जमाने से ज़्यादा रखो
रखो उम्मीद बस रब से यही तुम इफादा रखो
आएंगे जाएँगे गमों के आलम भी छट जाएंगे
मन में धैर्य ,हौसले और दिल को कुशादा रखो
ज़ख्म पर मरहम मिलते कहाँ, अब इस जमाने में
लगा ले हृदय से अपने कोई,ऐसा ना इरादा रखो
खिलो फूल की तरह,जो काँटों में भी मुस्काते हैं
जिओ ऐसे अपने मन और दिल को शाहजादा रखो
किरदार बदलते हैं लोगों के, वक़्त बदलते देखा है
बुरे वक्त में जो साथ निभाये, ऐसा रब का जादा रखो
इफादा- लाभ
कुशादा- खुला हुआ
जादा- उत्पन्न
ममता रानी