कुर्सी
अब हमे कही कोई पहचानता नही!
क्या फर्क पडता ,कोई जानता नही?
सब थी पद और कुर्सी की महिमा!
लोग करते थे खुशामद,महानता नही!!
दुनिया करती चमत्कार को नमस्कार!
चमत्कार नही हो तो कोई मानता नही!!
इसलिए कुछ न कुछ हासिल करना!
खेल-कूद,पढाई,संगीत मै जानता नही!!
लेकिन हर मंजिल के टाप पर पहुचना,
वरना कीडे-मकोडे ,कोई जानता नही!!
‘खुद को कर बुलंद इतना खुदा पूछे-
तेरी रजा क्या वोही कर ठानता नही!!