कुर्सी के लिए पूंजी
यह कुर्सी के लिए पूंजी इकट्ठा कर रही है
सियासत आज अपनों को पराया कर रही है
धरम के नाम पर गोरों ने आपस में लड़ाया
सियासत भी उन्हीं ज़ख्मों को ताजा कर रही है
हमारे संस्कारों की मिसालें ही अलग हैं
बहू अंधे ससुर से अब भी पर्दा कर रही है
कभी उसके लिए इस सोच पर ताले पड़े थे
वह बेटी आज घर का नाम ऊंचा कर रही है
उसे कमज़ोर कहकर तुम हिमाक़त कर रहे हो
बहाकर आंसुओं को दिल वह हल्का कर रही है