कुर्सी की चाह,नेताओं की डाह
कुछ लोग उन्हे युवराज पुकारें,
तो कोई डाह से पप्पू कह कर पुचकारे।
कुछ बडे उल्लास से नमो-नमो हैं जपते,
तो कोई उन्हे,फेंकू,और चाय वाला हैं कहते।
किसी के वह सुशासन बाबू रहते हैं,
तो कोई उन्हे पलटू राम कहते हैं।
यह भी हैं जो अराजक कहलाते हैं,
तो कोई उन्हे नोटकीं बाज बुलाते हैं।
क्या -क्या नही यह नेता कह जाते,
क्या -क्या नहीं लोग इन्हे कह जाते।
दो हजार उन्नीस का लक्ष्य है भारी,
गठ वन्धन की कसरत है जारी ।
जो चारे को चर जाते हैं,सत्ता से वह दूर छिटक जाते हैं।
हवाओं का रुख जो खुब हैं जाने,
मौसम बिज्ञानी लोग उन्हे माने।
ममता दीदी की तुनक मिजाजी,
कभी खिलाफत तो कभी होती राजी।
माया की माया अब भी बाकि है,
मुलायम से परहेज,और अखलेश को भाति है।
चन्द्र बाबू तो किंग मेकर हैं,
राव चन्द्र शेखर तो जैसे केयर टेकर हैं,
नवीन पटनायक कुछ भटके भटके हैं,
अम्मा जया के अनुयायी,दिनाकरन में अटके हैं।
उद्धव -राज दो छोर पे खडे हैं,
शरद पवार जैसे थके पडे हैं।
उमर -गुलाम मे गठ जोड नहीं टिकता,
रमन,शिवराज,वसुंन्धरा का ताज खिसकता,।
फडनवीश पर वरद हस्त है,
खट्टर मनोहर थोडा पस्त है।
सोनोवाल के हालात कठिन हैं,
अमरेन्द्र की राह कठिन है।
साम्य वादियों के सितारे गर्दिस में
सत्ता रह गयी सिर्फ केरल में।
दो हजार उन्नीस का क्या जनादेस होगा,
कौन दिल्ली का नया वारिस होगा।