कुर्ती
” रंग , जाति, धर्म या अमीरी-गरीबी के हिसाब से लोगों में फर्क करना इंसानियत के कानूनों के ख़िलाफ़ है सबको आपस मे मिलजुल कर रहना चाहिए, आपसी भाई चारे को क़ायम रखना चाहिए और आप बच्चे तो फरिश्ते होते हैं सच्चे और मासूम, एक दूसरे का साथ देना बड़ो की इज़्ज़त करना , बूढ़ों की ख़िदमत करना ही तो काम होता है फरिश्तों का …..”
हिना बहुत देर से अपनी प्रिंसिपल को सुन रही थी खुशी से उसके चेहरे पर अलग ही रौनक थी
मैडम कितनी अच्छी हैं कुछ देर तक मैडम की तक़रीर होती रही फिर मिठाईयां भी बटीं । यौमे आज़ादी का दिन , हर तरफ जैसे रौनकें बिखरी हुईं थीं ,आज न तो हिना को इस बात के लिए उलझना पड़ा कि टिफिन में क्या ले जाए क्यूँकि माँ बेचारी सिलाई कर के कुछ कमा पाती उसी से जो आता रोटी बनती,
कभी अचार ,कभी चटनी.. वही स्कूल में भी लाना होता कभी रोटी के साथ शक्कर
अक्सर बच्चे उसे हिकारत से देखते।
कुछ उसके साथ खेलते भी न थे न उसके साथ खड़े होना पसन्द करते थे, ऐसे में हिना उन लोगों से दूर हो गयी और अलग थलग ही रहती थी
हर बार उसे एहसास होता था कि वो उन सब के साथ बैठने या खेलने के क़ाबिल नहीं हैं पर क्यों?
वजह उसकी समझ मे न आई फिर जो नतीजा निकला वो था पैसे की कमी..
उन लोगों के पास पैसे ही तो न थे। जो थे वो उसकी अम्मी की मेहनत के थे अब्बू??
उसके अब्बू एक एक्सीडेंट में गुज़र गए थे छोटा भाई साल भर का रहा होगा, हिना तीन साल की थी ये सब अम्मी ने बताया था अब वही तो सब कुछ थीं अम्मी भी अब्बू भी
रिश्तेदार भी अब्बू के साथ ही फौत हो गए थे कोई आता न था, या शायद अब रिश्तेदारों के लिए हिना की अम्मी का कोई वजूद भी न था
पर आज मैडम की तक़रीर ने नन्ही सी हिना के सेरो खून बढ़ा दिए थे, कितना हौसला दिया था, बारह साला हिना कितनी खुश थी दौड़ते हुए खुशी से चहकते घर की तरफ भागी
आज अम्मी ने वादा जो किया था नए जोड़े दिलाने का
अम्मी को लेकर हिना बाजार की तरफ निकल गयी रास्ते भर प्रिंसिपल मैडम की तारीफ़ करती रही मैडम ने ये कहा, मैडम ने वो कहा, मैडम के लिए कोई गरीब नहीं कोई अमीर नहीं, कोई हिन्दू नहीं, मुस्लिम नहीं,
अम्मी बेचारी हाआं हूँ करती जातीं क्या कहतीं?
बाजार पहुँच कर वो उस स्टाल पर गयीं जहां सेल लगी थी यौमे आज़ादी के मौके पर कपड़े थोड़े सस्ते थे, या शायद पुराना स्टॉक था उसे निकालने के लिए स्टाल लगी हुई थी काफी भीड़ थी
हिना की अम्मी ने कई महीनों से एक एक पाई जुटाई थी पूरे 300 सौ रुपये,
उन्होंने पुराने कपड़े के थैले को कस के पकड़ा हुआ था जैसे खज़ाना हो ,
यहाँ चोर भी तो होंगे इतनी भीड़ जो हैं जमा पूँजी खिसक गई तो??
हिना हर चीज़ से बेपरवा कपड़े देखने में मशगूल थी रंग बिरंगे कपड़े, तरह तरह के उसे तो सब पसन्द आ रहे थे, पर अम्मी??
अम्मी हर कपड़े में ऐब ढूँढ ही लेतीं किसी कपड़े को उसके कच्चे रंग की वजह से या कमज़ोर होने की वजह से नापसंद कर देतीं और हिना बिलबिला जाती काफी छाँटने के बाद आखिर एक कुर्ती अम्मी को पसन्द आ ही गयी
अम्मी और हिना उसका पैसा देने काउंटर की तरफ बढ़ी की हिना में दूर से देखा प्रिंसिपल मैडम भी अपनी बेटी सकीना के साथ वहाँ मौजूद हैं उन्हें देखते ही हिना के आंखों की चमक बढ़ गयी वो खुशी से अम्मी का हाथ छोड़ उनकी तरफ लपकी
अम्मी बेचारी पैसा देना भूल हिना की तरफ तेज़ तेज़ कदम उठाने लगी, एकदम पागल लड़की थी कब क्या करे अम्मी को गुस्सा आने लगा था आखिर क्या वजह थी इस तरह इतनी भीड़ में हाथ छोड़ कर भागने की, कितनी बार समझाया था इस लड़की को।
पास पहुंचते ही हिना ने देखा सकीना ने भी वही कुर्ती उठा रखी थी जो हिना के पास थी अभी हिना पास जाकर कुछ कहती उससे पहले ही मैडम ने हिना के हाथ मे वो कुर्ती देखी उनकी आंखों का रंग थोड़ा बदला उन्होंने तुर्श लहज़े में ये कहते हुए वो कपड़ा सकीना के हाथ से लिया और वापस उस स्टाल में रख दिया कि “क्या अब तुम भी हिना की तरह कपड़े पहनोगी?”
और दुकान से बाहर हो लीं
हिना सुन्न पड़ गयी , मैडम का जो आइडल ज़हन में आदमकद की हैसियत रखता था धड़ाम से ज़मीदोज़ हो गया
अल्फ़ाज़ सादे ही तो थे पर उनकी तुर्शी , कड़वाहट?
हिना सोचती रही ” क्या होता अगर सकीना मेरी तरह कपड़े पहन ले?”
हिना और कुछ सोचती की अम्मी उसका हाथ घसीटते हुए कुर्ती के पैसे देने काउंटर की तरफ बढ़ने लगीं
वापसी पर हिना बिल्कुल खामोश थी और अम्मी हिना को डाँटती डपटतीं जल्दी जल्दी घर वापस लौट रहीं थीं
क्योंकि शाम का अंधेरा बढ़ने लगा था