कुरुक्षेत्र काव्य गोष्ठी 26/03/2022
प्रैस नोट: —————-संगदिल वो पानियों की धार से वाकिफ़ नहीं/ किस तरह दिल में रहेगा प्यार से वाकिफ़ नहीं … डॉ.ग्रेवाल संस्थान द्वारा काव्य-गोष्ठी का आयोजन… दो दर्जन कवियों ने की शिरकत कुरुक्षेत्र– डॉ. ओम प्रकाश ग्रेवाल संस्थान ,कुरुक्षेत्र द्वारा कैलाश नगर स्थित सेमिनार हॉल में विशाल काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया।इसकी अध्यक्षता ओमप्रकाश’उल्फ़त'(करनाल)व समकालीन कविता के प्रमुख हस्ताक्षर बृजेश कठिल ने की ।सफल संचालन कपिल भारद्वाज द्वारा किया गया।हरपाल के नव-प्रकाशित काव्य-संग्रह ‘औरतें पैदा नहीं होतीं’ और उल्फ़त जी के ग़ज़ल-संग्रह ‘ शाम-ए-ग़ज़ल’ का विमोचन जयपाल,ओमप्रकाश करुणेश, डॉ. अशोक भाटिया, डॉ. रविन्द्र गासो व अध्यक्ष-मंडल द्वारा किया गया।दीपक वोहरा(करनाल)व करुणेश ने दोनों पुस्तकों और कवियों का परिचय दिया।एक से एक उम्दा शायरों व कवियों द्वारा पेश की गई कला की कुछ चुनिंदा बानगी देखिए-उल्फ़त -‘देख ली मैंने यह दुनिया देख ली/अपने गांव की गली अच्छी लगी।’नहीं मंज़िल का कुच्छ नामों निशां तक/यहां राही हैं कम रहबर बहुत हैं। मनजीत भोला- संगदिल वो पानियों की धार से वाकिफ़ नहीं/किस तरह दिल में रहेगा प्यार से वाकिफ़ नहीं।देवेन्द्र बीबीपुरिया ‘मेहरम’– अरे वो शख्स भी कितने गज़ब की बात करता है/मशीनी दौर में देखो अदब की बात करता है। दीपक मासूम–जुल्म की आंधी हवा लाचार चलती है/अब सहारे झूठ के सरकार चलती है। दीपक वोहरा –अब आर है या पार है/बस इंकलाब ही दरकार है।उन्हें यदि है अंधेरे का/हमें उजाले का इंतजार है।जयपाल (अम्बाला)—हिन्दू मारा गया मुस्लिम हंसता रहा/मुस्लिम मारा गया हिन्दू हंसता रहा/ हंसी हंसी में दोनों मारे गए। अशोक भाटिया –आग उतनी बची/जितनी मनुष्य के भीतर रह गई। पानी उतना बचा जितना/मनुष्य की आँखों में बचा रहा।हरियाणवी कवि कर्म चन्द ‘केसर'(चीका) –जे यारां नैं किनारा करया ना होंदा/बेमौत वा बचारया मरया ना होंदा। मेहरू(कैथल)—मन्नै बैरी भी उसदिन नेड़े देक्खे /जब अपणे भी कुण्डा सांकल भेड़े देक्खे।इसके अलावा डॉ.बृजेश कठिल, डॉ. राम कुमार, डॉ प्रदीप ,विकास शर्मा, डॉ.कृष्ण बनवाला, बलदेव मेहरोक, अंबर थानेसरी, डॉ. जीवन बख्शी, बीर सिंह, खान मनजीत भावड़िया मजीद,हरपाल,करुणेश , कपिल भारद्वाज आदि ने बेहतरीन कविताएं सुनाईं। संयोजक डॉ.रविन्द्र गासो ने सभी कवियों व श्रोताओं का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि रूह और दीमाग को रौशन करने वाले ऐसे कार्यक्रम जितने भी हों कम हैं।