“कुमार्य “
मैं ख़ास नहीं आम हूँ,
आम ही रहने दो,
दुनिया में आयी हूँ अगर,
पाक साफ़ ही रहने दो !
मुझमें सीता का सा धैर्य नहीं,
अग्नि परीक्षा दूँ !
धोबी के कहने पर बनवास सहूँ !
सीता का सा सामर्थ्य भी नहीं,
लव – कुश को वन में जनूँ !
मैं ख़ास नहीं आम हूँ,
आम ही रहने दो !
मीरा की सी शक्ति नहीं और भक्ति नहीं,
जो ज़हर को अमृत कर दूँ !
भगवान के नाम पर भी,
दुनिया के तंज सहूँ !
मैं ख़ास नहीं आम हूँ,
आम ही रहने दो !
मुझमें अहिल्या का सा धीरज नहीं,
शाप से पत्थर बन जाऊँ !
सदियों बाद राम के चरणों,
अपना उद्धार करवाऊँ !
मैं ख़ास नहीं आम हूँ,
आम ही रहने दो !
तुम भी राम नहीं,
मैं भी कोई सीता नहीं !
तुम भी गौतम नहीं,
मैं भी अहिल्या नहीं !
इन तकिया – कलामों को
शास्त्रों में रहने दो !
मैं ख़ास नहीं आम हूँ,
आम ही रहने दो !
मत तोलो मुझे,
परीक्षणों के तराज़ू में,
ये सतयुग नहीं कलयुग है ज़नाब,
कि मैं तुम्हारी कसौटी पर
खरी उतर पाऊँ !
“कुमार्य” परिक्षण करवाकर भी,
पाक साफ़ रह जाऊँ !
मैं ख़ास नहीं आम हूँ,
आम ही रहने दो !
मत करो कुछ ऐसा,
कि कलंकिनी कहलाऊँ !
कलंकित होकर के,
इस दुनिया में न रह पाऊँ !
दुनिया का काम है कहना,
उन्हें कहने दो !
तुम मुझे पाक साफ़ ही रहने दो !
मैं ख़ास नहीं आम हूँ “शकुन”,
मुझे आम ही रहने दो !
– शकुंतला अग्रवाल, जयपुर