कुबूल ज़िन्दगी
चाहे हो कांटे चाहे हो फूल ज़िन्दगी
हर हाल होनी चाहिए कुबूल ज़िन्दगी
काम जो किसी के आए न हम कभी
मेरे ख्याल में तो है फ़िज़ूल ज़िन्दगी
खुद को भी वक्त दे नहीं पाता है आदमी
जाने कहां पे हो गई मशगूल ज़िन्दगी
जिसे देखो व दर्दो ग़म मे है मुब्तिला
मिलती नहीं किसी को माकूल ज़िन्दगी
अपने हो या ग़ैर “अर्श” खंजर लिए बैठे हैं
लोगो ने समझ रखी है मक्तूल ज़िन्दगी