* कुपोषण*
“कुपोषित बचपन, कुपोषित होता समाज
पूरा पोषण कब मिलेगा यही एक विचार
उद्योगपतियों और पैसे वालों के जो अन्न मारा-मारा फिरता
उसी कुछ दानो के लिए मासूम गरीब फरिश्ता तड़पता
दूसरी तरफ भूखमरी महामारी
शिक्षित होते हुए भी
हर इंसान आज ठोकरें खाता फिर रहा
यह किस ओर का रुख आने वाला कल कर रहा
यही सोचकर मन परेशां सा फिर रहा
हालात सुधरे इसी चाहत में हर शख्स सब्र में जी रहा
पोषण दो भरपूर पोषण दो
यही स्वर जग संसार में गूँज रहा”