कुनमुनी नींदे!!
कुनमुनी नींदे
ना जाने किस ख्याल में खोयी हुई,
पलकों पे नाचती सी कुनमुनी नींदे!!
तेरी यादों की मखमली चादर ओढी हुई
दिल में झाँक इतराती हैं कुनमुनी नींदे!!
तुझसे मुलाकातों का जिक्र करती हुई
हौठों पे यूं मुस्काती हैं कुनमुनी नींदे!!
बरिशो के मौसम में भीगी बरसती हुई
जुल्फों में छुप भीगती हैं कुनमुनी नींदे!!
सिर के पल्लू को यूं दातों से दबाती हुई
माथे की बिंदीया पे शरमाती कुनमुनी नींदे!!
अंधियारी रातों में इंतजार कर रोती हुई
आंखों से गंगा सी बहती हैं कुनमुनी नींदे!!
सितारों के फूलों को चुनकर लाती हुई
फलक पे जाके टक जाती कुनमुनी नींदे!!
शब्दो की माला में से अर्थों को ढूँढती हुई
सपनें खूंटी पे टांग, उंघती कुनमुनी नींदे
विरह में जलती जूगनू सी भटकती हुई
मुझसे मुझको ही चुराती हैं कुनमुनी नींदे
पिया मिलन के सौ सौ बहाने सोचती हुई
हाथ लकीरों से तुझे मांगती कुनमुनी नींदे!!
——-डा. निशा माथुर/8952874359