कुदरत
समय समय पर कुदरत भी ,
रौंद रूप दिखला देती।
मानव करता जब जब गलती,
अपना परिचय दे देती।
माँ बनकर करती है पोषण,
कष्ट जगत के सह लेती ।
सब कुछ सौप दिया अपना,
बदले में न कुछ लेती।
पर अंडे जैसे लालच में,
पेट फाडना रोका करती।
समय समय पर कुदरत भी,
रौंद रूप दिखला देती।।
भूल गए तुम कहर सुनामी,
केदार स्थल भी बहा देती।
महामारी को न्यौता देकर,
विज्ञान का गर्व मिटा देती ।
एक नहीं कई बार कुदरत,
चमोली सा सबक देती।
सुधर जाओ दुनिया वालों,
मर्यादा ध्यान करा देती।
समय समय पर कुदरत भी,
रौंद रूप दिखला देती।
यदि चाहते सुख में जीवन,
प्राकृतिक ज्ञान करा देती।
सब प्राणी उसकी संतानें,
महत्व सभी का दे देती।
अतिवाद के दुष्प्रभाव से,
कुदरत भी कुपित होती ।
सृष्टि धर्म के पालन हित,
विनाश लीला रच देती।
समय समय पर कुदरत भी,
रौंद रूप दिखला देती।
राजेश कौरव सुमित्र