कुदरत
शीर्षक – कुदरत ***************** सच तो यही जिंदगी कुदरत होती हैं। मन भावों में सोच हम सबकी रहती हैं। हां जमाने में चलना तो मुस्कुराना होता हैं। कुदरत के साथ हम सभी का जीवन होता हैं। सच हमारा फैसले कुदरत के हाथ होते हैं। मुश्किलों से जूझने में हम सभी इंसान होते हैं। कुदरत ने अपने न पराए सोचती करती हैं। रंगमंच पर हम सभी कुदरत के साथ रहते हैं। हां हकीकत में दर्द कहने को हमदर्द ढुढ़ते हैं। न राह में कोई हम सभीअकेले ही चलते हैं।
हां जीवन जिंदगी सब कुदरत और समय होता है ।
************************* नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र