कुदरत के बदलाव
आने लगा अषाढ ही,इन्द्र देव को रास !
सावन जैसा हो रहा,देखो तो अहसास ! !
जहाँ चले थी गाडियाँ, वहाँ चले अब नाव !
आया जहाँ मिजाज़ मे,कुदरत के बदलाव !!
सड़कें नदिया बन गई,दिखे टहलती नाव !
दे जाती कुदरत हमे, जब जब ऐसे घाव ! !
आधे हिंदुस्तान मे,.. …..जनजीवन बेहाल !
होता है हर साल क्यों,दिल में उठे सवाल ! !
रमेश शर्मा