कुदरत का खेल
#कुछ लोग केवल लोगो को #उपयोग की वस्तु समझते हैं ; उन्ही लोगो को सीख देती हुई एक कविता।
आप सब प्रतिक्रिया जरूर दें।
जब आदमी को खुद पर गुरुर हो जाता है,
तब आदमी -आदमी से, दूर हो जाता है।
मत दो किसी को दर्द इतना,बगावत कर बैठे,
बगावती तेवर अक्सर ,मशहूर हो जाता है।
संस्कृति सभ्यता संस्कार भरा हो जिसमें
दुनिया मे वही सख्स, कोहिनूर हो जाता है।
संभाले कहा संभलती है,शोहरतें सभी से,
शोहरत पाकर इंसा, मगरूर हो जाता है।
पद पैसा प्रतिष्ठा,पाकर गुमान न करना,
गुमान कैसा भी हो आखिर, चूर हो जाता है।
संदीप शुक्ला
रायबरेली
78 00 57 45 75