कुत्सित मानसिकता वाले पुरूष
मान नारी का भंग करने वालो
हे कुत्सित मानसिकता वाले युवा
कब सुधरोगे जरा बतलाओ
सस्कारों की पाठशाला छूटी कहाँ
क्या है शिष्टाचार तुम्हारे पारिवारिक
नारी से जन्मे , मिले तुम्हें गति कहाँ
कर घिनोना कर्म , आत्मा न सकुचाई
चिर जाता तेरी ,माँ बहन का कलेजा
कर दानव जैसी हरकत, शर्म न आई
कोन लगता है तू , झूठे राजतन्त्र का
दिखाया जो बहसीयापन मातृ शक्ति पर
उसमें लगता है , हाथ रहे राजतन्त्र का
बिसात ए राजनीति की बिछाई गई
किस पल अस्मत की बोली लगाई
सच के सामने झूठ की छवि छिपाई गई
पापकर्म करते , पग तले धरा न थर्राई
काले अक्षरों से अंकित , होगा तेरा इतिहास
देख बहसीयेपन को , निर्लज्जता न आई