कुत्तों की सभा
कुत्तों की सभा थी,सभी कुत्ते मौन थे,क्या आप जानते है ? ये कुत्ते कौन थे ?
ये कुछ पढ़े लिखे कुत्ते थे । सब के सब बी.ए. पास थे ,
तो आइए जानते है कि ये सब क्यों उदास थे ?
ये समाज द्वारा फेकी रोटी नही उठाना चाहते है ।
ये कुत्ते होकर भी पसीने की कमाई खाना चाहते है ।
पर इन्हें मलाल है इस बात का
समाज द्वारा उपेक्षित लोगों के लिए “धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का””
ये फ़िल्म वालो ने तो हमे कही का नही छोड़ा है ।
दुःख तो इस बात का है,कि कुत्तो के साथ कमीनो को जोड़ा है ।
हमारी ईमानदारी को जरा दिल के पैमाने से मापना
अब कभी मत कहना “बसंती इन कुत्तो के सामने मत नाचना”
तब हमने कुत्तो से कहा मुद्दे पर आवो
जो भी तुम्हारी माँगे है हमे बताओ
हम तुम्हारे लिए कुछ खास करवाएँगे
तुम्हारी माँगो को संसद से पास करवाएंगे
संसद का नाम लेते ही एक बुड्ढा कुत्ता बोला
पहले दुम हिलाया बाद में मुँह खोला
मान्यवर आज की मीटिंग का एजेंडा बहुत खास है
हमारा घर संसद भवन के पास है
नेतावो से दरख्वास्त है, या तो हमारी नकल करना बंद करे
या फिर हम पढ़े लिखे कुत्तो का कही अलग प्रबंध करे ।।