कुण्लिया छंद
विधा – कुण्डलिया
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मारक क्षमता गजब की, तुम हो बड़े भुवाल।
तेरे कारण हे प्रिये, जीना हुआ मुहाल।।
जीना हुआ मुहाल, नींद तुम सारी हरते।
रक्त मिले अनुकूल, जल्द ही भक्षण करते।।
कहे सचिन कविराय, बता तू किस घर रमता?
मच्छर तुमको खूब, मिली है मारक क्षमता।।
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मैं संजीव शुक्ल “सचिन” घोषणा करता हूँ कि मेरे द्वारा प्रेषित रचना पूर्णतः मौलिक, स्वरचित,अप्रकाशित और अप्रेषित है।
[पं.संजीव शुक्ल “सचिन”]