कुण्डलिया
मौसम
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कोहरा धुंध ले आया ,अवनि धरे नव रुप ।
सूरज चढ़ा मुड़ेर में , नखरे करती धूप ।।
नखरे करती धूप ,ओस धुलती तृण दल।
शीत लहर बल खाय, नभ छाए उजले बादल।
कह जाफर कविराय , मौसम मार से हारे ।
अरहर लगा तुषार , साग खा गये कोहरे ।।
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बदले तेवर मौसम ने , तरणि का निकला दम।
हाड़ कांपे जाड़े में , ठुठरता जग आलम ।।
ठुठरता जग आलम, मानुष घरों में दुबके।
छत नहीं जिसके सिर , रोय हिय चुपके चुपके।।
दिन मास नहिं विश्राम , देश उनके दम मचले ।
किसान और जवान , दशा दोउकी न बदले ।।
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स्वरचित एवं मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
शेख जाफर खान