कुण्डलिया
नाउम्मीदी शेष है, बचा सके ना कोय,
हर कोई नाकाम हैं, साल इक्कीस खोय।
साल इक्कीस खोय, बचे दिन बस गिनती के,
नव वर्ष हर्षाए, मिले फल जन विनती के।
कह विनोद कविराय, बनो मत तुम भी जिद्दी,
सहर्ष स्वागत करो, छोड़कर नाउम्मीदी।
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’