कुण्डलिया
जात धर्म हैं पूछते , नहीं लगे है लाज ।
अगड़े पिछड़ों में बंटा, सारा आज समाज ।।
सारा आज समाज, भूल कर सब मर्यादा ।
कहें देश है गौण, जात का महत्व ज्यादा ।।
कहते श्री कविराय, लोग यहां बेशर्म हैं ।
होती जब भी बात, पूछते जात धर्म हैं ।।