[ कुण्डलिया]
लियत देत को दोष नहिं ,ये सब लोकाचार ।
अवनि-अंबर चहुँ दिश , बिखरा जहाँ आपार ।।
बिखरा जहाँ आपार , सियार को स्वांग धरके ।
मांस नोच हड्डी खाये , नकली मुंह रचके ।।
जन के संमुख जब आए, धवल रंग साजत ।
रीत साजी नीति धरी , नहि होत देत लियत ।।
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शेख जाफर खान