कुण्डलिया छंद
कुण्डलिया छंद……!
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माया का संचय किया , किये बुरे बहु काम ।
वैभव एकत्रित किया, बिसराया हरि नाम ।।
बिसराया हरिनाम , बंद कर नयन डोलता ।
पल भर को भी पटल, हृदय का नहीं खोलता ।।
देकर आया वचन, कभी भी नहीं निभाया ।
घूम रहा मदमत्त , बटोरे केवल माया ।।
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काल शिकारी बुन रहा , धीरे-धीरे जाल ।
घात लगा बैठा छिपा, मकड़ी जैसा काल ।।
मकड़ी जैसा काल, जीव पर घात लगाये ।
आकर जाने कौन, जाल में कब फँस जाये ।।
कहे ‘ज्योति’ सुन मौत, जीव से कभी न हारी ।
हर पल करे शिकार, अनौखा काल शिकारी ।।
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-महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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