कुण्डलिया छंद | आचरण
निर्मल बोली बोलिए, बोली से पहचान।
कभी नहीं कीजिए, कोई भी अभिमान।।
कोई भी अभिमान, नहीं इस मन को व्यापे।
मन में पापी चाल, तो हर कोई सरापे।।
कहे ‘शिवा’ कविराय, रहोगे हरदम अव्वल।
पूरे हों हर काम, रखो जो मन को निर्मल।।
~©अभिषेक श्रीवास्तव “शिवा”