कुछ…
…. कुछ….
चल आज कुछ सुनाती हूं
लफ्जों मे अपने बया करती हूं
ज़िंदगी का यह बहुत प्यारा अहसास है
दूर होकर भी सब के दिल के पास है
मानो खुशियों का मेला है,
यह जीवन भी कहां अकेला है
सब ने गले से लगाया है मुझे
तोहफों से सजाया है मुझे
महफिल के साथीदार ,
हम भी कहलाते हैं
कोहिनूर से दोस्त
हर वादे निभाते हैं
ज़िंदगी के सारे गिले शिकवे हम भूल जाते हैं
जब लोग दिल से गले लगाते हैं
आज खुद पर भी हो रहा विश्वास है
शायद आज का दिन भी कुछ खास है।।
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नौशाबा जिलानी सुरिया