कुछ
कुछ रंग दर्द में डूबे है।
कुछ दर्द निमग्न है रंगो में।
कुछ दर्द छलकते जामो में।
कुछ रंग बिखरे सत्संगो में।
कुछ रंग पलाशी निखरे है।
कुछ होली वाले हुड़दंगो में।
कुछ दर्द खून में बहते है।
कुछ होते है उन दंगो में।
कुछ लोग छोड़ते रंग अपना।
कुछ मिल जाते लफंगो में।
कुछ तो मानवता रोती है।
कुछ शामिल हो जब नंगो में।
कुछ सोचो कुछ तो समझो।
कुछ क्या रखा इन पंगो में।
कुछ इतराए पाकर कुछ भी।
कुछ मिटता हें पर जंगो में।
कुछ मिल जाते मीत राह में।
कुछ खुशबू भरते जो अंगो में।
****** मधु गौतम