कुछ ही समय पहले
कुछ ही समय पहले की बात है,
आपदा प्राकृतिक हो, समझ आती है.
मामले प्रबंधन के हों, गैर जमानती है.
बात रोटी की हो, भूख पहली बात है.
मजदूरी देने वालों से ये कैसी मुलाकात है
बात मजदूरी घटाने की हो,समझ आती है.
पैंशन हटाने की हो,
जोर बुढापा पैंशन पर हो.
युवा थोडे आ जाते है, टैंशन में.
फैशन अधूरे रह जाते हैं,
कैपसन से काम चलता नहीं,
युवाओं योधाओं राष्ट्रवादियों.
क्यों हो चले दूर वादियों से.
क्या तुम्हारे फर्ज नहीं बनते.
चक्रवाती भूख को पहचान लो.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस