कुछ सवालात
कितना उलझाओगे ख़ुद को
ज़ंजीर -ए -रिवायात में ,
कुछ सवालात कौंधते रह जाएंगे
परदा- ए- ज़ेहन में ,
अंधेरे न छटेंगे हर क़दम
आग़ाज़ -ए-सहर के उजालों में ,
ये उम्र गुज़र जाएगी
सवालात के ज़वाब की जुस्तुजू में ,
शु’आ -ए- उम्मीद रफ्ता- रफ्ता,
जलती- बुझती रहेगी ,
ज़ब्त- ए – एहसास लिये ज़िंदगी,
यूँ ही गुज़रती रहेगी।