कुछ सपने अधूरे ही रह जाते हैं !
कुछ सपने अधूरे ही रह जाते हैं !
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जीवन की आपाधापी में सब दौड़ चले हैं !
घर – बार अपना सब यूॅं ही छोड़ चले हैं !
हर मनुष्य को ही कुछ न कुछ की कमी है !
जिसकी जुगत में लगाते सब होड़ चले हैं !!
विशाल सी ज़िंदगी है,आवश्यकताएं अनंत हैं !
थोड़ी खुशियाॅं तो हैं पर दु:ख भी नहीं कम है !
इसी विषय के इर्द-गिर्द हम सब दौड़ते हरदम हैं !
चीखते चिल्लाते ज़्यादा पर खुश होते कमसम हैं!!
कोई दो वक्त की रोटी की तलाश में है दौड़ रहा !
कोई शिक्षा की जुगत में ही इधर-उधर भटक रहा !
तो कोई चिकित्सालय के चक्कर ही रोज लगा रहा!
कोई अन्य पारिवारिक समस्याओं से ही जूझ रहा !!
आवश्यकताएं ज़्यादा हैं पर पूर्ति के साधन कम हैं !
आसमान छूती महंगाई भी हमें दर्द दे रहे हरदम हैं !
दिन प्रतिदिन रोजगार के अवसर भी हो रहे कम हैं !
सचमुच,सब ढ़ेर सारी समस्याओं से जूझते हरदम हैं!!
जीवन के लंबे से सफ़र में कितनी सारी समस्याएं हैं !
अपने अपने तरीके से सभी हल जिसे करते जाते हैं !
पर इसके चक्कर में सारी दुनिया की ही दौड़ लगाते हैं!
कुछ सपने पूरे हो जाते पर कुछ अधूरे ही रह जाते हैं !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 11 सितंबर, 2021.
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