कुछ शेर
१, हम बदनसीब तो तन्हाई में जीते हैं,
महफ़िल में तो हमारा दम घुटता है.
२, यह तेरी बेरुखी ,यह तेरा मिजाज़ कैसा है,
आज क्यों तू मुझसे खफा -खफा सा है.
३, खुद पर सितम ढाने का फन हम रखते हैं,
शायद तभी दिल टूटने पर मुस्कुरा दिया करते हैं.
४, चोट खाने की आदत पड़ चुकी हैं हमें ,
अब कदम-कदम पर दर्द का एहसास क्या करना.