कुछ शायरियां जो ग़ज़ल नहीं बन पाई विनीत सिंह शायर
कैसे छुपाएँ अपने चेहरे की चमक यारों
गुजरे हैं आज वो बहुत क़रीब से होकर
आख़िर किस काम आनेवाला हूँ मैं उनके
सोच रहा हूँ जब से वो गुज़रे हैं मुस्कुराकर
देखिए अब आप भी किसी और के हो लिएँ
अब बेवफ़ा का हमको मत नाम दीजिएगा
हम अपना ग़म सुना रहे हैं यारों
ख़ुदा के वास्ते आँखें नम कर लो
उन्हे भी शाम का इंतेज़ार है अब
जिन्हे मैख़ानो से नफ़रत थी पहले
~विनीत सिंह शायर