कुछ शब्द कुछ भाव कविता
कुछ शब्द इकट्ठे करता हूं
कुछ भाव इकट्ठे करता हूं
दुख दर्द लिए फिरते हैं
कुछ आस लिए फिरते हैं
कुछ दर्द बयां करते अपना
कुछ चेहरे पर आभास लिए फिरते हैं दुख में पिसती इस दुनिया के
कुछ घाव इकट्ठे करता हूं
इस रंग रंगीली दुनिया में
दुख संकट है भारी भारी
इस गम के साये मे रहकर भी
खुश रंग रहे दुनिया सारी
इसी तरह के मैं अपने
कुछ ख्वाब इकट्ठे करता हूं
शोषण से भरी दुपहरी में
धन दौलत की चाहत में
इस गर्म हवा के झोंके से
खुद मानवता हीं घायल है
इस जलती तपती गर्मी में
कुछ छांव इकट्ठे करता हूं
कुछ शब्द इकट्ठे करता हूं
कुछ भाव इकट्ठे करता हूं
@ओम प्रकाश मीना