कुछ लड़की
बड़ी मासूम बनकर के, करेंगी प्यार कुछ लड़की।
जमा लेती हैं तुमपर ही, बहुत अधिकार कुछ लड़की।
न लैला और मजनू सी, मुहब्बत है कहीं जिंदा
यहाँ तो जिस्म का करती, बड़ा व्यापार कुछ लड़की।
निकल जाता है जब मतलव तुम्हे ये छोड़ देती हैं
रचती हैं यही नाटक, यहाँ हर बार कुछ लड़की।
ये’ बीयर वॉर में जाकर, पियेंगी वोडका विस्की
नशे में पेश करती फिर, नए अशआर कुछ लड़की।
शहर की लड़कियों से तुम, जरा वाकिफ़ रहो ‘अभिनव’
करेंगी पीठ पीछे से, किसी दिन वार कुछ लड़की।
अभिनव मिश्र अदम्य