* कुछ लोग *
** कुण्डलिया **
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आपस में उलझे हुए, रहते हैं कुछ लोग।
और बेवजह देखिए, कष्ट रहे हैं भोग।
कष्ट रहे हैं भोग, यही है इनकी फितरत।
इसीलिए हर बार, समझते नहीं हकीकत।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, डूबकर असमंजस में।
तज हितकारी सोच, उलझते हैं आपस में।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०१/११/२०२३