कुछ लम्हे साथ गुजर पाए
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किसी की साजिश का कहर है
या
फ़िजाओं में घुला जहर है
या कह दो न
कि
यह ठंडी हवा की लहर है
आजकल जो
व्यस्त रहने लगे हैं
हम-तुम
मिलने को भी कम पड़ गया
आठो पहर है
रिश्ते तो अब भी हैं
यादों में, ख्वाबों में
एहसासों में, इंतजारों में
वो भोर वाली….
मीठी-मीठी सपनों में
हाँ !
रिश्ते अब भी हैं
तेरे-मेरे विश्वासों में
पर,
कहो न तुम ही
कि
जी पाओगे सांस बिन ?
मुश्किल है न….
रह पाओगे मुझ बिन ?
तो…चलो छोड़ो न अब
जिम्मेदारी
मिल-बांट बनो न
भागीदारी
कि
भागम-भाग के
इस दौड़ से
कुछ वक्त निकल पाए
जिंदगी के कुछ लम्हे भी
साथ गुजर पाए….
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– राहुल कुमार विद्यार्थी
03/02/2020